हिन्दू, हिंदुत्व, हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्मग्रंथों का कड़वा सच
The Bitter Truth of Hindu, Hinduism, Hindu Religion and Hindu Scriptures
सरेआम निर्दोष लोगों की हत्या और स्त्रियों के साथ बलात्कार करने वाले लोग भी उतने नीच, घटिया और मक्कार नहीं होते हैं, जितने कि हिन्दू धर्म के तथाकथित संचालक पंडे हैं, पुजारी हैं, साधु हैं, संत हैं और सन्यासी हैं। जो हजारों सालों से हिन्दू धर्म को आँख बंद करके मानने वाले भोले-भाले लोगों का और हिन्दू धर्म का भी शोषण करते आये हैं। जो खुद धर्म के नाम पर जीते आये हैं। जिन्होंने हजारों सालों से आज तक धर्म को अपनी आजीविका बना रखा है। जिन्होंने धर्म को गोरखधंधा और व्यापार बना रक्खा है। जो सरेआम भगवान को भी बेचते हैं और जिनके परिवार भगवान को बेचने पर जिन्दा रहते हैं। ऐसे लोग सबसे बड़े क्रूर अपराधी और शोषक हैं। इनके शिकंजे से मानवता की मुक्ति जरूरी है।-सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Sunday 17 June 2012

हिन्दू मतलब?

  1. अपने आप के लिए हिन्दू शब्द का उपयोग करवाने का सच्चा हकदार यदि कोई है तो केवल "भारत भूमि के मूल निवासी" हैं!
  2. जबकि "हिन्दू" शब्द को कुछ विदेशी मूल की चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्य जातियों ने धर्म से जोड़ दिया, जबकि सच में "हिन्दू" शब्द एक भौगोलिक अर्थ का द्योतक शब्द है!
  3. जिसके अनुसार भारत में व्यापारी के वेष में आर्यों के आगमन से पूर्व सिन्धु नदी के पार या किनारे (पूर्व में) भारत की भूमि पर उस समय निवास करने वाली सभी जातियों और नस्लों के भारतीय लोगों को ही "हिन्दू" कहकर संबोधित किया गया!
  4. जिसका उस समय किसी धर्म से कोई दूर का भी वास्ता नहीं था! क्योंकि आज यदि हम पड़ताल करना चाहें तो पायेंगे कि किसी भी धार्मिक ग्रन्थ में धर्म के रूप में "हिन्दू धर्म" शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है!
  5. जिससे स्वत: प्रमाणित होता है कि व्यापारी आर्यों के आगमन से पूर्व भारत भूमि पर निवास करने वाली सभी जातियों और नस्लों लोग ही उस समय "वास्तविक हिन्दू" कहलाये !
  6. यहाँ तक कि सर्व प्रथम चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्यों ने ही सिन्धु नदी के किनारे रहने/बसने  वाले अनार्य मूल भारतियों के लिए "हिन्दू शब्द" का प्रयोग किया था!
  7. लेकिन आज के सन्दर्भ में "हिन्दू" शब्द एक धर्म सूचक शब्द बना दिया गया है! जिसका मतलब आर्य-ब्राह्मणों द्वारा अपने स्वार्थ किए प्रतिपादित तथाकथित "सनातन धर्म" को मानने वाले सभी लोग "हिन्दू" हैं! 
  8. इसलिए आम व्यक्ति की समझ में "हिन्दू" शब्द का आज के सन्दर्भ में यही अर्थ सही और वास्तविक है! जिसे "हिन्दू धर्म" बना दिया है!
  9. "हिन्दू धर्म"-एक ऐसा धर्म जिसमें "जन्म और कुल के आधार पर मानव-मानव में आजीवन विभेद किया जाना धार्मिक होने का सबसे बड़ा प्रमाण है!
  10. जिसको प्रतिपादित करने वाले चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्य ब्राह्मणों के वंशजों को अपने इस अमानवीय कुकर्म के लिए आज भी कोई अफ़सोस या शर्म या अपराधबोध नहीं है!
  11. बल्कि वे अपने पूर्वजों के कुकर्मों और असंख्य घृणित अपराधों को येनकेन सही और धार्मिक सिद्ध करने के लिए, आज भी लगातार कुतर्क दिए जा रहे हैं!
  12. यही नहीं वे हर हाल में आज भी इस अमानवीय "हिन्दू धर्म" को मजबूत करना चाहते हैं! जिसके लिए लगातार अनेक प्रकार के कथित धार्मिक आयोजन चलते रहते हैं। जिनमें होने वाला सारा खर्चा अनार्यों द्वारा उठाया जाता है। 
  13. सबसे दु:खद तथ्य तो ये है कि चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्यों के शिरोमणी "ब्राह्मणों" ने उनकी रक्षा करने वाले यौद्धा "क्षत्रियों" को भी परशुराम के हाथों इक्कीस बार इस भरता भूमि से समूल नष्ट करवा दिया।
  14. केवल यही नहीं यौद्धा "क्षत्रियों" के हत्यारे परशुराम को "भगवान परशुराम" कहकर उसके जन्म दिन को एक सप्ताह तक धूम-धाम से मनाया जाता है।
  15. संसार से सबसे बड़े हत्यारे लेकिन ब्राह्मणों के कथित भगवान परशुराम के जन्म दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की ब्राह्मणों द्वारा सरकार से लगातार मांग की जा रही है!
  16. आर्य वैश्यों को भी "ब्राह्मण" आर्यों में सबसे निचले पायदान पर ब्रह्मा की जांघों से उत्पन्न बताकर हजारों सालों से लगातार अपमानित किया है!
  17. इसके उपरान्त भी चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्यों के शिरोमणी "ब्राह्मणों" ने चालाकी से आज के क्षत्रियों और वैश्यों को अपने साथ, अपने गुट में मिला रखा है तथा भारत की समस्त मूल/अन्य अनार्य जातियों-प्रजातियों को ब्रह्मा के पैरों से उत्पन्न बताकर "शूद्र" कहकर हजारों सालों से लगातार अपमानित किया है!
  18. केवल इतना ही नहीं, बल्कि चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्यों के शिरोमणी "ब्राह्मणों" ने अपनी खुद की बहन-बेटियों सहित समस्त स्त्री प्रजाति को शूद्रों से भी निचले पायदान पर स्थापित करके उसे "नरक का द्वार, पुरुष की दासी, मूर्ख, कुलता, व्यभिचारिणी" जैसे अपमानजनक और घृणित अलंकारों अलंकृत किया हुआ है!
  19. सबसे दु:खद तो ये है कि ऐसे हिन्दू धर्म को फिर से आधुनिक लोकतान्त्रिक भारत में ताकतवर बनाने के लिए चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्यों के शिरोमणी "ब्राह्मणों" के निर्देशानुसार अनेक कथित हिन्दू संगठन और हिन्दू हितैषी राजनैतिक दल सुनियोजित रूप से कार्यरत हैं!
  20. इससे भी भयंकर दु:खद और शर्मनाक तो ये है कि चालाक, आक्रमणकारी और व्यापारी आर्यों के शिरोमणी "ब्राह्मणों" की इस कूटनीति को सफल बनाने में सबसे बड़ा योगदान स्त्रियों, शूद्रों और वैश्यों के कथित 99 फीसदी हिन्दू अनुयायियों का ही है! जो खुद के पैरों पर कुलहाड़ी मार रहे हैं! क्योंकि एक फीसदी "ब्राह्मणों" ने निन्यानवें फीसदी कथित हिन्दुओं को मानसिक रूप से अपना गुलाम बना रखा है!   

3 comments:

  1. आप जो भी हे श्रीमान लेखक आपने हिन्दुओ के दिल में जो गलत धारणा डालने के लिए यह ब्लॉग किया हे उसके लिए में आपको इनाम देना चाहूँगा।हिन्दू धर्म में जगत्जननी जगदम्बा स्त्री हे। स्त्री का आदर और सन्मान जितना हम आर्य करते हे वो कोई नहीं करता। और आपने शास्त्र के जिन प्रसंगों का वर्णन किया हे वो सब अधूरे ये प्रसंगों में एसा स्त्री के बारे में क्यों और किसलिए कहा गया इसका भी आपको ज्ञान नही हे।में आपकी सारी बातो का खंडन करूँगा सबुत के साथ मेरा सम्पर्क करे 09712289777

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  2. मनुस्मृति के आधार पर प्राचीनकाल का जो चित्र उभरता है, उसमें मांसभक्षण, पशुयज्ञ, जातिपांति, छुआछूत, उंचनीच, भेदभाव जैसी घिनौनी बातें हैं।
    अब बदले हुए हालातों के कारण, धर्मग्रन्थों का बड़ा हिस्सा अनुपयोगी हो चुका है।
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    ब्राह्मणवादियों की जब पोल खुलने लगती है और कुछ कहता नहीं बनता – तो हर असुविधाजनक बात का इनके पास एक रटा-रटाया उत्तर है – “प्रक्षेपवाद”। मानो यह इनका ब्रह्मास्त्र हो। प्रक्षेपवाद के बहाने ग्रन्थों को “क्लीन चिट” दी जा रही है। क्या आपके पास कुछ ऐसा भी है, जिसमें मिलावट न हो?
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    हर ग्रंथ को मिलावटी घोषित कर देना, हिन्दू समाज के बौद्धिक दिवालियेपन की निशानी है।
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    क्या हमारे पूर्वज इतने गए-बीते थे कि वे अपने हस्तलिखित ग्रन्थों को भी सुरक्षित नहीं रख पाये, जो उनकी हर पांडुलिपि पर विदेशी कलम और PRINTING PRESS चलती रही।
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    अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए ब्राह्मणवादियों द्वारा यह आरोप लगाया जाता है कि विदेशियों ने वैदिक धर्मग्रन्थों का गलत मतलब निकाला और ग्रन्थों में मिलावट कर दी, खुद की तरफ से श्लोकों को जोड़ दिया गया या काँट-छांट की गई।
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    क्या वैदिक धर्मग्रन्थों की सिर्फ एक-दो कॉपी थी पूरे देश में, कि विदेशियों ने बड़े ही आसानी से मिलावट कर दी।
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    क्या विदेशियों ने सारी मिलावट सिर्फ वैदिक धर्म में ही की थी?
    जैनियों ने तो कभी नहीं कहा कि विदेशियों ने हमारे ग्रन्थों में मिलावट कर दी, सिखों ने तो कभी नहीं कहा कि विदेशियों ने “गुरु ग्रंथ साहिब” में मिलावट कर दी, मुसलमानों ने तो कभी नहीं कहा कि विदेशियों ने हमारे ग्रन्थों में मिलावट कर दी।


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  3. क्या मनुस्मृति में कोई ऐसा श्लोक भी मिलता है जिसमें शूद्र के उपनयन (जनेऊ) का विधान हो? जो उसे गुरु के पास शिक्षा ग्रहण करने के लिए अनुमति देता हो? उसके वेद पढ़ने की बात तो छोड़ो, सामान्य विद्या ग्रहण करने का भी कहीं आदेश हो?
    क्या मनुस्मृति में शूद्र के लिए सिवाय ग्रहस्थ आश्रम के, किसी और आश्रम का भी विधान हो?
    क्या नारी के उपनयन का, उसके पढ़ने का, वेद अध्ययन करने का, कोई आदेश है मनुस्मृति में?

    जब इस तरह के प्रश्न उठेंगे, तो यह कहा जाएगा कि इस तरह के सब श्लोक, विदेशियों ने ग्रन्थों में से निकाल दिये थे – मतलब कुछ श्लोक जोड़ दिये और कुछ निकाल दिये।
    तब फिर आपके लोग क्या कर रहे थे? ग्रंथ आपके थे या उनके? क्या उस वक़्त आप समाधि में लीन थे?
    हमें हर उस ग्रंथ का धन्यवाद देना चाहिए, जिसने समाज को कुछ रचनात्मक दिया है – लेकिन हिन्दू समाज का 85%, कोई शूद्र मनुस्मृति का किस बात के लिए धन्यवाद करेगा? हिन्दू समाज कि 50% कोई स्त्री मनुस्मृति का किस बात के लिए धन्यवाद करेगी? इस देश व समाज के विघटन के दुष्परिणाम भोगने वाले लोग, किस बात के लिए मनुस्मृति जैसे ग्रन्थों का धन्यवाद करें?

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