हिन्दू, हिंदुत्व, हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्मग्रंथों का कड़वा सच
The Bitter Truth of Hindu, Hinduism, Hindu Religion and Hindu Scriptures
सरेआम निर्दोष लोगों की हत्या और स्त्रियों के साथ बलात्कार करने वाले लोग भी उतने नीच, घटिया और मक्कार नहीं होते हैं, जितने कि हिन्दू धर्म के तथाकथित संचालक पंडे हैं, पुजारी हैं, साधु हैं, संत हैं और सन्यासी हैं। जो हजारों सालों से हिन्दू धर्म को आँख बंद करके मानने वाले भोले-भाले लोगों का और हिन्दू धर्म का भी शोषण करते आये हैं। जो खुद धर्म के नाम पर जीते आये हैं। जिन्होंने हजारों सालों से आज तक धर्म को अपनी आजीविका बना रखा है। जिन्होंने धर्म को गोरखधंधा और व्यापार बना रक्खा है। जो सरेआम भगवान को भी बेचते हैं और जिनके परिवार भगवान को बेचने पर जिन्दा रहते हैं। ऐसे लोग सबसे बड़े क्रूर अपराधी और शोषक हैं। इनके शिकंजे से मानवता की मुक्ति जरूरी है।-सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Wednesday 28 August 2013

हिन्दू धर्म-स्त्री होने का मतलब?

अनेक संगठन और राजनैतिक दल हिन्दू धर्म रक्षार्थ प्रयासरत हैं
अत: जानना जरूरी है कि हिन्दू धर्म से कौन-कैसे ताकतवर होगा?

हिन्दू धर्म-स्त्री होने का मतलब?

  • स्त्री के मन को शिक्षित नहीं किया जा सकता। उसकी बुद्धि तुच्छ होती है।-ॠग्वेद-8/33/17
  • स्त्रियों के साथ मैत्री नहीं हो सकती। इनके दिल लकड़बघ्घों के दिलों से क्रूर होते हैं।-ॠग्वेद-10/98/15
  • पुत्री कष्टप्रदा, दुखदायिनी होती है।-ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ।
  • बेटी को दुहिता इसलिये कहा जाता है कि वह ‘दुर्हिता’ (बुरा करने वाली) और ‘दूरेहिता’ (उससे दूर रहने पर ही भलाई) है। वह ‘दोग्धा’ (माता-पिता के धन को चूसने वाली) है।-आचार्य यास्क कृत ग्रंथ निरुक्त-अ.3, ख.4
  • -ॠग्वेद में ‘विधवेव देवरम्’ (10-40-2) आता है। इसका अर्थ करते हुए स्वामी दयानंद सरस्वती ने लिखा है- ‘‘जैसे विधवा स्त्री देवर के साथ संतानोत्पत्ति करती है, वैसे ही तुम भी करो।’’ फिर उन्होंने निरुक्तकार यास्क के अनुसार ‘देवर’ शब्द का अर्थ बताते हुए लिखा है-
  • ‘‘विधवा को जो दूसरा पति होता है, उसको ‘देवर’ कहते हैं।’’ (देखें-ॠग्वेदादिभाष्य भूमिका, नियोग प्रकरण)

मनुस्मृति में नारी विषयक दृष्टिकोण

  1. -पुरुषों को खराब करना स्त्रियों का स्वभाव ही है, अत: बुद्धिमानों को इनसे बचना चाहिये।
  2. -पुरुष विद्वान हो, चाहे अविद्वान, स्त्रियां उसे बुरे रास्ते पर डाल देती हैं।
  3. -ललाई लिए भूरे रंग वाली, 6 उंगलियों वाली, ज्यादा बालों वाली, बिना बालों वाली, ज्यादा बोलने वाली स्त्री के साथ विवाह नहीं करें। (लेकिन मनुस्मृति में ये नहीं बताया गया कि इन दुर्गुणों वाली कन्या किसी परिवार में जन्में तो उसका उसके माता-पिता क्या करे?)
  4. -जिनका कोई भाई न हो, उसके साथ विवाह नहीं करें।
  5. -स्त्रियों का बचाकर रखना चाहिये। वे सुंदर या कुरूप का भी ध्यान नहीं करती। वे किसी भी पुरुष की हो जाती हैं।
  6. -स्त्रियों में क्रोध, कुटिलता, द्वेष और बुरे कामों में रुचि स्वभाव से ही होती है।
  7. -स्त्रियों के संस्कार वेदमंत्रों से नहीं करने चाहिये। वे मूर्ख व अशुभ होती हैं।
  8. -विधवा स्त्री का दोबारा विवाह नहीं करना चाहिये। यदि किया जाये तो धर्म (हिन्दू धर्म) का नाश होता है।
  9. -यदि सगाई के बाद ही भावी पति मर जाये तो कन्या को उसके (भावी पति के) छोटे भाई के साथ ब्याह दें।
  1. चाणक्यनीतिदर्पण-(14/12)-अग्नि, पानी, स्त्री, मूर्ख व्यक्ति, सर्प और राजा से सदा सावधान रहना चाहिये। क्योंकि ये सेवा करते-करते ही उलटे फिर जाते हैं। अर्थात् प्रतिकूल होकर प्राण कर लेते हैं।
  2. चाणक्यनीतिदर्पण-(16/2)-स्त्रियां एक के साथ बात करती हुई दूसरे की ओर देख रही होती हैं और दिल में किसी तीसरे का चिंतन हो रहा होता है। इन्हें किसी एक से प्यार नहीं होता।
  3. चाणक्यनीतिदर्पण-(10/4)-स्त्रियां कौनसा दुष्कर्म नहीं कर सकती?
  4. चाणक्यनीतिदर्पण-(2/1)-झूठ, दुस्साहस, कपट, मूर्खता, लालच, अपवित्रता और निर्दयता स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।
-श्रृंगारशतक-का 76 वां पद्य-स्त्री संशयों का भंवर, उद्दंडता का घर, उचितानुचित काम की शौकीन, बुराईयों की जड़, कपटों का भंडार, अंधविश्‍वासों की पात्र होती है। महापुरुषों को सब बुराइयों से भरपूर स्त्री से दूर रहना चाहिये। न जाने धर्म का संहार करने के लिये स्त्री की सृष्टि किस ने कर दी?

-8वीं सदी के महान हिन्दू दार्शनिक शंकराचार्य का कहना है-‘स्त्री नरक का द्वार है।’

-13वीं सदी के संत कबीर ने लिखा है-

नारी की झांई परत, अंधा होत भुजंग।
कबिरा तिन की क्या गति, नित नारी के संग।

-तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है-

ढोल गंवार शूद्र पसु नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।

-राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ सिद्ध करने वाले तुलसीदास ने भी राम द्वारा दहेज स्वीकारने और दहेज में दास-दासियों को स्वीकार करने का उल्लेख किया है-

कहि न जाय कुछ दायज भूरी,
रहा कनक मणि मंडप पूरी।

गज रथ तुरग दास अरु दासी,
धेनु अलंकृत काम दुहासी।

स्रोत : क्या बालू की भीत पर खड़ा है हिन्दू धर्म?

2 comments:

  1. to aap kahna kya chahte hai..... mujhe kuch samjh nahi aaya......Hindu dharm ko nast kar dena chahiye....sabko kisi or dharam me chale jana chahiye... aap aaina dikha rahe ya aaine par sar mar rahe ho.....?

    Muslimo me or shyad Isaiyon mahilaon ki halat shayad jayada achchi hogi aapke hisab se..... ye sabhi jo aapne tatthya upsathit kiye hai ye aap janmanush ke liye nahi hai...ye yogion ke liye hai jo sanyasi hona chahte hai.....na ki aam manav ke liye.... or yadi koi stri vidrup hai to kai purush bhi vidrup hote hai....to unka vivah unse karo...isme batane or na batane wali kya baat..... chalo bye kam likha hai jayada samjhna...

    ReplyDelete
  2. आपकी पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा !

    कृप्या कुछ पोस्ट मेरे ब्लॉग की पढ़ें ,

    क्यूँकी मुख्य विषय है समाज मैं सुधार कैसे होना है यह है,

    ReplyDelete