रामायण की ऐतिहासिकता-क्या रामायण ऐतिहासिक ग्रंथ है?
(यहॉं प्रस्तुत सामग्री केवल उन पाठकों के लिये है, जो तर्क और सत्य में विश्वास करते हैं)
जब कभी हमारे पूर्वजों के इतिहास बोध की बात चलती है तो प्राय: वाल्मीकि रामायण को इतिहास ग्रंथ के तौर पर पेश किया जाता है और यह स्थापित करने की कल्पना की कोशिश की जाती है कि प्राचीन भारतीयों का इतिहास बोध बहुत स्पष्ट था। लेकिन जब हम रामायण को उठाते हैं तो वहां कुछ और ही दिखाई पड़ता है। रामायण के लेखक (वाल्मीकि) ने रामायण की प्रद्भति का कई स्थलों पर उल्लेख किया है। उसने इसे कहीं भी ‘इतिहास’ नहीं कहा। इस प्रसंग में रामायण के शुरू और अन्त के कुछ स्थल यहां प्रस्तुत हैं :-
बालकांड-02/35 : ब्रह्मा ने वाल्मीकि से कहा, तुम्हारे काव्य में कुछ भी झूठा नहीं होगा।
बालकांड-02/14 : वाल्मीकि ने कहा, मैं सम्पूर्ण रामायण काव्य की रचना करूंगा।उत्तरकांड-111/16 : यह वही आदिकाव्य है, जिसे पहले वाल्मीकि ने रचा।उत्तरकांड-111/03 : वे प्रसन्न होकर स्वर्ग में नित्य रामायण काव्य को सुनते हैं।उत्तरखंड, रामायण माहात्म्य-01/19 : रामायण महाकाव्य सब वेदों के अनुकूल है।उत्तरखंड, रामायण माहात्म्य-22 : इस ॠषि प्रणीत काव्य को सुनकर व्यक्ति शुद्ध हो जाता है।उत्तरखंड, रामायण माहात्म्य-27 : रामायण नामक परम काव्य है।उत्तरखंड, रामायण माहात्म्य-5/54 : इस रामायण महाकाव्य को सुनकर।उत्तरखंड, रामायण माहात्म्य-5/61 : रामायण आदि महाकाव्य है।
अंत: इन प्रमाणों और साक्ष्यों से स्पष्ट कि रामायण को न उसके रचयिता ने इतिहास माना और रामायण भक्तों ने। सब ने एक स्वर में इसे काव्य कहा है। अगले अंक में पढें कि ‘क्या रामायण कल्पना है?’
स्रोत : क्या बालू की भीत पर खड़ा है-हिन्दू धर्म?
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