हिन्दू, हिंदुत्व, हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्मग्रंथों का कड़वा सच
The Bitter Truth of Hindu, Hinduism, Hindu Religion and Hindu Scriptures
सरेआम निर्दोष लोगों की हत्या और स्त्रियों के साथ बलात्कार करने वाले लोग भी उतने नीच, घटिया और मक्कार नहीं होते हैं, जितने कि हिन्दू धर्म के तथाकथित संचालक पंडे हैं, पुजारी हैं, साधु हैं, संत हैं और सन्यासी हैं। जो हजारों सालों से हिन्दू धर्म को आँख बंद करके मानने वाले भोले-भाले लोगों का और हिन्दू धर्म का भी शोषण करते आये हैं। जो खुद धर्म के नाम पर जीते आये हैं। जिन्होंने हजारों सालों से आज तक धर्म को अपनी आजीविका बना रखा है। जिन्होंने धर्म को गोरखधंधा और व्यापार बना रक्खा है। जो सरेआम भगवान को भी बेचते हैं और जिनके परिवार भगवान को बेचने पर जिन्दा रहते हैं। ऐसे लोग सबसे बड़े क्रूर अपराधी और शोषक हैं। इनके शिकंजे से मानवता की मुक्ति जरूरी है।-सेवासुत डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

Tuesday 17 September 2013

हिन्दू धर्म-स्त्री होने का मतलब?-पाठक प्रतिक्रिया!

हिन्दू धर्म-स्त्री होने का मतलब?

प्रेसपालिका के 16 से 31 अगस्त, 13 के अंक में प्रकाशित उक्त शीर्षक के आलेख पर पाठकों की टिप्पणियॉं
औरत के सम्मान की परवाह नहीं करता ऐसे हिन्दू धर्म की जरूरत ही क्या है?

प्रेसपालिका में ‘हिन्दू धर्म-स्त्री होने का मतलब?’ शीर्षक से मुखपृष्ठ पर जो आलेख प्रकाशित किया है, वह हर एक स्त्री की आँखें खोलने वाला है। इसे पढकर मुझे बहुत गहरा सदमा लगा है।

बचपन से सुनते आये हैं कि भारत में कभी स्त्री की पूजा की जाती थी और बेटी को लक्ष्मी अवतार बताया जाता रहा है। लेकिन आज समाज में हालात ये हैं कि बेटी के पैदा होने पर खुशी के बजाय गमी देखी जाती है और बेटे के जन्म पर खुशी मनायी जाती है। आपके लेख से ज्ञात होता है कि स्त्री जाति के अपमान के पीछे हिन्दू समाज की गंदी मानसिकता काम कर रही है, जिसे उसी हिन्दू धर्म ने जन्म दिया जाता है, जिसे संसार का सबसे बड़ा और महान धर्म बताया जाता है।

जबकि कड़वी सच्चाई यह है कि बेटी ही मॉं-बाप की चिंता करती है, उनका नाम रोशन करती है और उनकी खुशी का खयाल रखती है। आज हमारे देश में लड़कियों की जो कमी है, उसका मूल कारण है, हमारे हिन्दू धर्म की स्थापना करने वाले पंडित, पुरोहित और राजनेता। हिन्दू धर्मग्रंथों के रचियता कहते हैं कि-बेटी मॉं-बाप का धन चूसने वाली होती है। पुरुषों को खराब करने वाली होती है। बेटी मूर्ख और अशुभ होती हैं। क्रोध, द्वेष कुटिलता और बुरे कार्यों में रुचि उनका स्वभाव होता है। वे एक से नहीं अनेक मर्दों से प्यार करती हैं।

आठवीं सदी के महान हिन्दू दार्शनिक शंकराचार्य ने तो स्त्रियों के बारे में बिना सोचे समझे बहुत बड़ी अपमानजनक बात कह दी है-‘स्त्री नर्क का द्वार है’! लेकिन  ऐसा कहते समय वे यह भूल गये कि यदि स्त्री नर्क द्वार है तो फिर उनको भी तो नर्क का द्वारा रूपी स्त्री ने ही जन्म दिया है। वही स्त्री उस शंकराचार्य को इस दुनिया में लायी है। अगर स्त्री नहीं होती तो ये शंकराचार्य इस दुनिया में पैदा ही नहीं होते। जहॉं तक मेरा मानना है, हर एक सफल पुरुष के पीछे एक औरत होती है। चाहे वह मॉं, बहिन या पत्नी कोई भी हो।

हमारे देश में औरतों ने इतिहास रचा है। चाहे इन्दिरा गॉंधी का राजनीति के क्षेत्र में योगदान हो, चाहे विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना चावला का नाम हो। स्त्री हंसते हंसते सबकुछ सह लेती है। जब बर्दाश्त करने की हद पार हो जाती है तो वही स्त्री दुर्गा का रूप ले लेती है। फिर सामने चाहे कोई भी क्यों न हो, पीछे नहीं हटती है। औरत को घटिया बताने वाले हिन्दू धर्म के ठेकेदारों को समझना चाहिये कि यदि स्त्री नहीं होती तो मर्द का वजूद ही क्या था?

सच तो ये है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। जहॉं तक बात है हिन्दू- धर्म की या धर्मग्रंथों की तो मैं तो यही कहूँगी कि जो धर्म औरतों की इज्जत करना नहीं जानता, जिस धर्म को औरत के सम्मान की परवाह नहीं, ऐसे हिन्दू धर्म की हमारे देश में कोई आवश्यकता नहीं है!

मैं आशा करती हूँ कि प्रेसपालिका में आगे भी इसी प्रकार की जानकारियॉं छपती रहेंगी, जिससे धर्म के नाम पर ऊलजुलूल बातों को लिखने वाले धर्म के ठेकेदारों की सच्चाई आज की पीढी को पता चल सके। वहीं स्त्रियों को जागरूक होने का अवसर मिल सके।-सुमन शर्मा, जयपुर।

हिन्दू धर्मग्रंथों को छापने और बेचने वाले लोग अपनी माता-बहनों की इज्जत को बेच रहे हैं!

प्रेसपालिका में ‘हिन्दू धर्म-स्त्री होने का मतलब?’ शीर्षक से जो महत्वूपर्ण जानकारी प्रकाशित की गयी है। उसके लिये सम्पादक को कोटि-कोटि धन्यवाद और आभार। आपने इस आलेख के मार्फत इस बात को बखूबी प्रमाणित कर दिया है कि आज हमारे समाज में बेटियों, बहिनों और पत्नियों के प्रति जो घृणात्मक सोच है, उसके लिये हिन्दू धर्म के धर्मग्रंथ और इन ग्रंथों के रचियता, प्रकाशक और आज भी इनका महिमामंडन करने वाले पुरोहित, पंडे और पुजारी ही जिम्मेदार हैं। इन्हीं लोगों की बीमार सोच के कारण ही आज कन्या भ्रूणहत्या जैसा पाप फल-फूल रहा है।

स्त्री जाति के बारे में इस प्रकार की अवैज्ञानिक और अमानवीय सोच जिन ग्रंथों में लिखी गयी है, ऐसे ग्रंथों को धर्मग्रंथ कहना धर्म की पवित्र भावना के खिलाफ है। जिस हिन्दू धर्म में ऐसे धर्मग्रंथों और ऐसे धर्मगंथों के लेखकों का सम्मान होता हो, उस हिन्दू धर्म का पतन होना तय है। ऐसे धर्म को नष्ट हो ही जाना चाहिये। जो धर्म मानवता की आधी आबादी अर्थात् 50 फीसदी स्त्री जाति को ही नर्क का द्वार मानता हो, वह धर्म कैसे मानवीय हो सकता है? ऐसा धर्म सिवाय इस धर्म के संचालकों के और किसका भला कर सकता है? जो भी लोग हिन्दू धर्म के इन धर्मग्रंथों को आज भी प्रकाशित करते हैं, छापते हैं और इन्हें बेचते हैं, वे सभी अपनी माता-बहनों की इज्जत का सौदा कर रहे हैं। वे अपनी माता-बहनों की इज्जत को बेच रहे हैं!-ममता माहेश्‍वरी, नयी दिल्ली।

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